मेरा हर लफ़्ज हर बात अधूरी है
तुम्हारे बिन दिन और रात अधूरी है
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मैं क्या ग़ज़ल पेश करूँ, यूँ तो
तुम्हारे बिन ग़ज़ल की शुरुआत अधूरी है
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ऐसे बस जाए कभी सोचा ही नहीं
तुम्हारे बिन मेरे लिए कायनात अधूरी है
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कैसे मुकम्मल हो मेरी रूह-ए-ग़ज़ल
तुम्हारे बिन ग़ज़ल की पूरी ज़ात अधूरी है