चेहरे पर गिराकर जुल्फ

चेहरे पर गिराकर जुल्फ बरबस मुस्कुराते हो !
खुदाया कहर ढाते हो खुदाया कहर ढाते हो !!

तुम्हारे बदन पर बूँदें ठहर पातीं नहीं फिर भी !
क्यों हर एक मौसम की बारिश में नहाते हो !!

कभी छुपकर के आते थे अभी छुपते हो हमसे भी !
ये दौरे इश्क है जानां क्यों छुपते और छुपाते हो !!

नज़र देखीं नजारे भी बहुत अन्तर नहीं होता !
नजारों को अगर देखें , नज़र तीरे चलाते हो !!

कभी बाँधी कभी खोलीं ये जुल्फें तुमने कई बार !
कुछ एैसे धूप छाँव कर सूरज को सताते हो !!

बहुत मासूम से लगते हो हमको भी मगर सुनलो !
कमसिनी में भी जवानी की बहुत बातें बनाते हो !!

तुम शौक से सुनलो सभी तेज़े गज़ल लेकिन !
खुद ही गुनगुनालो तुम सखी को क्यों सुनाते हो

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *