तेरी आँखो से खुलते हैं सवेरों के उफुक,
तेरी आँखो में ही बंद होती हैं ये सीप सी रात,
तेरी आँखे हैं या सजदे में है मासूम नमाज़ी,
जब भी खुलती है पलक यूं गूंज के उठती है नज़र,
जैसे मन्दिर में जले जरस की नमनाक हवा,
और झुकती है तो बस जैसे अजां खत्म हुई हो,
तेरी आँखे, ये तेरी ठहरी हुई गमगीन सी आँखे,
तेरी आँखो से ही तकलीक हुई है सच्ची,
तेरी आँखो से ही तकलीख हुई है ये हयात…