कांच के टुकड़े बनकर बिखर गयी है ज़िन्दगी मेरी…
किसी ने समेटा ही नहीं…
हाथ ज़ख़्मी होने के डर से…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कांच के टुकड़े बनकर बिखर गयी है ज़िन्दगी मेरी…
किसी ने समेटा ही नहीं…
हाथ ज़ख़्मी होने के डर से…