होठों पे तेरी खुश्बू

निकल आए इधर जनाब कहाँ
रात के वक़्त आफ़ताब कहाँ

मेरी आँखों में किसी के आँसु कहाँ
वरना इन पत्थरों में अब  कहाँ

सब खिले हैं किसी की आरिज़ पर
इस बरस बाग़ में गुलाब कहाँ

मेरे होठों पे तेरी खुश्बू है
छु सकेगी इन्हें शराब कहाँ

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