तस्वीर का रुख
तस्वीर का रुख एक नहीं दूसरा भी है;
खैरात जो देता है वही लूटता भी है;
ईमान को अब लेके किधर जाइयेगा आप;
बेकार है ये चीज कोई पूछता भी है;
बाज़ार चले आये वफ़ा भी, ख़ुलूस भी;
अब घर में बचा क्या है कोई सोचता भी है;
वैसे तो ज़माने के बहुत तीर खाये हैं;
पर इनमें कोई तीर है जो फूल सा भी है;
इस दिल ने भी फ़ितरत किसी बच्चे सी पाई है;
पहले जिसे खो दे उसे फिर ढूँढता भी है।