ज़माना ज़ुल्म ढाये

लाख ज़माना ज़ुल्म ढाये, वक़्त न वो ख़ुदा दिखाये
जब मुझे हो यक़ीं कि तू हासिल-ए-ज़िन्दगी नही

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