जब कभी भी

जब कभी भी ख़वाब में सहरा नज़र आया मुझे।

तिश्नगी का इक नया चेहरा नज़र आया मुझे।।

परिंदों को तो

परिंदों को तो खैर रोज कहीं से, गिरे हुए दाने जुटाने हैं
पर वो क्यों परेशान हैं, जिनके भरे हुए तहखाने हैं|