मोहब्बत थी इसलिए जाने

मोहब्बत थी इसलिए जाने दिया, ज़िद होती तो बाहों में होती…

बस कुछ ऐसी ही

बस कुछ ऐसी ही हो गयी हैं जिंदगी मेरी ना बया कर सके ना फना कर सके

दिल भी एक जिद

दिल भी एक जिद पे अड़ा है किसी बच्चे कि तरह… या तो सब कुछ ही उसे चाहिए या कुछ भी नही…

एक छोटे से सवाल

एक छोटे से सवाल पे इतनी ख़ामोशी… … सिर्फ इतना ही तो पूछा है..”याद आती है मेरी ???

इतनी ठोकरें देने

इतनी ठोकरें देने के लिए, शुक्रिया ए-ज़िन्दगी चलने का न सही, सम्भलने का हुनर तो आ गया…….. !!

मेरे साथ बैठ के वक़्त

मेरे साथ बैठ के वक़्त भी रोया एक दिन। बोला बन्दा तू ठीक है …मैं ही खराब चल रहा हूँ।

इंसान में रब होता है

इंसान में रब होता है ये तो ठीक है .. लेकिन,,भाई ये इंसान कहां होता है l

कितने बरसों का सफर

कितने बरसों का सफर यूँ ही ख़ाक हुआ। ..जब उन्होंने कहा “कहो..कैसे आना हुआ ?

तुम ये कैसे जुदा हो

तुम ये कैसे जुदा हो गये?! हर तरफ़ हर जगह हो गये!! अपना चेहरा न बदला गया! आईने से ख़फ़ा हो गये!!

अगर अहसास बयां

अगर अहसास बयां हो जाते लफ्जों से तो…… फिर कौन करता कद्र…. खामोशियों की…..

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