शोला था जल-बुझा हूँ हवायें मुझे न दो
मैं
कब का जा चुका हूँ सदायें मुझे न दो
जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने
मुझे दिया
अब तुम तो ज़िन्दगी की दुआयें मुझे न दो
ऐसा कहीं न हो
के पलटकर न आ सकूँ
हर बार दूर जा के सदायें मुझे न दो
कब मुझ
को ऐतेराफ़-ए-मुहब्बत न था
कब मैं ने ये कहा था सज़ायें
मुझे न दो