फासलें इस कदर हैं आज रिश्तों में, जैसे कोई घर खरीदा हो किश्तों में
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यादों का कारोबार
बहुत मुश्किल से करता हूँ तेरी यादों का कारोबार.. मुनाफा कम ही है लेकिन गुज़ारा हो ही जाता है..
हम लबों से
हम लबों से कह ना पाये, उनसे हाल – ए –दिल कभी, और वो समझे नही यह ख़ामोशी क्या चीज है..
दिल्लगी पे जालिमहम
कभी रूखसत करना मेरी दिल्लगी पे जालिम हम बजारो मे नही हजारो मे मिलते है….
हमारी भी गलतियाँ
हाथ जख्मी हुए तो कुछ हमारी भी गलतियाँ थी,,, लकीरों को मिटाने चले थे किसी एक को पाने के लिए…
मोहब्बत की राह
रहता है मशग़ला जहाँ बस वाह-वाह का मैं भी हूँ इक फ़कीर उसी ख़ानक़ाह का मुझसे मिल बग़ैर कहाँ जाइयेगा आप इक संगे-मील हूँ मैं मोहब्बत की राह का
जो भी आता है
जो भी आता है एक नई चोट देकर चला जाता है, माना मैं मजबूत हूँ लेकिन…… पत्थर तो नहीं.!
मेरी दहलीज़ पर
मेरी दहलीज़ पर आ कर रुकी है हवा_ऐ_मोहब्बत, मेहमान नवाज़ी का शौक भी है उजड़ जाने का खौफ भी…!!!
गुजर रहा था
गुजर रहा था तेरी गली से सोचा उन खिड़कियों को सलाम कर लूँ… जो कभी मुझे देख कर खुला करती थी..
मेरी ज़िन्दगी की
टिकटें लेकर बैठें हैं मेरी ज़िन्दगी की कुछ लोग……. साहेबान……. तमाशा भी भरपूर होना चाहिए…… निमा की कलम से………..