‘अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त
पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!’
असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण
दिव्य दाह-सी
सपूत मातृभूमि के- रुको न शूर साहसी!
अराति सैन्य
सिंधु में, सुवाड़वाग्नि से जलो,
प्रवीर हो जयी बनो – बढ़े चलो, बढ़े
चलो!