ख़ाक उड़ती है रात भर मुझ में…
कौन फिरता है दर-बदर मुझ में.. !
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मुझ को मुझ में जगह नहीं मिलती…
कोई मौजूद है इस क़दर मुझ में।
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
ख़ाक उड़ती है रात भर मुझ में…
कौन फिरता है दर-बदर मुझ में.. !
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मुझ को मुझ में जगह नहीं मिलती…
कोई मौजूद है इस क़दर मुझ में।