by pyarishayri - गरूर शायरी, गुस्ताखियां शायरी, जिंदगी शायरी, दर्द शायरी, दोस्ती शायरी, नफ़रत शायरी, शर्म शायरी, हिंदी शायरी - December 28, 2015 अकड़ती जा रही हैं अकड़ती जा रही हैं हर रोज गर्दन की नसें, आज तक नहीं आया हुनर सर झुकाने का .