प्रशंसा चाहे कितनी भी करो
किन्तु अपमान बहुत सोच समझकर करना चाहिये
क्योंकि अपमान वो ऋण है
जो हर कोई अवसर मिलने पर ब्याज सहित चुकाता अवश्य है।
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
प्रशंसा चाहे कितनी भी करो
किन्तु अपमान बहुत सोच समझकर करना चाहिये
क्योंकि अपमान वो ऋण है
जो हर कोई अवसर मिलने पर ब्याज सहित चुकाता अवश्य है।