हवा बन कर बिखरने से

हवा बन कर बिखरने से​;​
उसे क्या फ़र्क़ पड़ता है​;​​

मेरे जीने या मरने से​;​
उसे क्या फ़र्क़ पड़ता है​;

उसे तो अपनी खुशियों से​;​
ज़रा भी फुर्सत नहीं मिलती​;

मेरे ग़म के उभरने से​;​
उसे क्या फ़र्क़ पड़ता है​;

उस शख्स की यादों में​;​
मैं चाहे रोते रहूँ लेकिन​;

मेरे ऐसा करने से​;​
उसे क्या फ़र्क़ पड़ता है​।

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