प्रशंसा चाहे कितनी भी करो

प्रशंसा चाहे कितनी भी करो
किन्तु अपमान बहुत सोच समझकर करना चाहिये
क्योंकि अपमान वो ऋण है
जो हर कोई अवसर मिलने पर ब्याज सहित चुकाता अवश्य है।

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