ज़िम्मेदारियों के शोर में

ज़िन्दगी जाने कब से गुनगुना रही है कुछ कानों में ….

ज़िम्मेदारियों के शोर में, कुछ सुनाई नहीं देता..

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *