लहरों की ज़िद पर क्यों अपनी शक़्ल बदल लेतीं है ,
दिल जैसा कुछ होता होगा शायद इन चट्टानों में।
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
लहरों की ज़िद पर क्यों अपनी शक़्ल बदल लेतीं है ,
दिल जैसा कुछ होता होगा शायद इन चट्टानों में।
सुखे पत्तों की तरह बिखरा हुआ था मैं ,
किसी ने बड़े प्यार से समेटा…….
.फिर आग लगा दी !
कभी इतना मत मुस्कुराना की नजर लग जाए जमाने की, हर आँख मेरी तरह मोहब्बत की नही होती….!!!
लुटा चुका हूँ बहुत कुछ अपनी जिंदगी में यारो
मेरे वो ज़ज्बात तो ना लूटो, जो लिखकर बयाँ करता हूँ|
ठान लिया था कि अब और शायरी
नही लिखेंगे पर उनका पल्लू गिरा देखा और
अल्फ़ाज़ बग़ावत कर बैठे|
दिल के टुकड़े टुकड़े करके, मुस्कुरा के चल दिये॥
कभी नूर-ओ-रँग भरे चेहरे से
इन घनी जुल्फोँ का पर्दा हटाओ,जरा हम भी तो देखेँ,
आखिर
चाँद होता कैसा है….!!!
आसमां पे ठिकाने किसी के नहीं होते,
जो ज़मीं के नहीं होते, वो कहीं के नहीं होते..!!
ये बुलंदियाँ किस काम की दोस्तों…
की इंसान चढ़े और इंसानियत उतर जायें….
वो लोग भी चलते है आजकल तेवर बदलकर …
जिन्हे हमने ही सिखाया था चलना संभल कर…!