क्या तू मुझको समझा कह दे,
दरिया कह या सहरा कह दे.
मुझे आईना कहने वाले,
अपना मुझको चेहरा कह दे.
सिर्फ सोचने से क्या होगा,
अच्छा हूँ तो अच्छा कह दे.
साथ में हर पल रहता है तू,
फिर भी चाहे तो तन्हा कह दे.
छिपा रहा है ख़ुद को मुझसे,
क्या है तेरी मंशा कह दे.
इश्क़ में तेरे ही हूँ अब तू,
अँधा,गूंगा बहरा कह दे.
सोच में तेरी बहने लगा हूँ,
अब तो मुझको गंगा कह दे….
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वो कभी मिल जाएँ
वो कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिए
रात दिन सूरत को देखा कीजिए
चाँदनी रातों में इक इक फूल को
बे-ख़ुदी कहती है सजदा कीजिए
जो तमन्ना बर न आए उम्र भर
उम्र भर उस की तमन्ना कीजिए
इश्क़ की रंगीनियों में डूब कर
चाँदनी रातों में रोया कीजिए
पूछ बैठे हैं हमारा हाल वो
बे-ख़ुदी तू ही बता क्या कीजिए
हम ही उस के इश्क़ के क़ाबिल न थे
क्यूँ किसी ज़ालिम का शिकवा कीजिए
आप ही ने दर्द-ए-दिल बख़्शा हमें
आप ही इस का मुदावा कीजिए
कहते हैं वो सुन कर मेरे शेर
इस तरह हम को न रुसवा कीजिए
मुद्दत उन्हें देख
बाद मुद्दत उन्हें देख कर यूँ लगा
जैसे बेताब दिल को क़रार आ गया
आरज़ू के गुल मुस्कुराने लगे
जैसे गुलशन में बहार आ गया
तिश्न नज़रें मिली शोख नज़रों से जब
मैं बरसने लगी जाम भरने लगे
साक़िया आज तेरी ज़रूरत नहीं
बिन पिये बिन पिलाये खुमार आ गया
रात सोने लगी सुबह होने लगी
शम्म बुझने लगी दिल मचलने लगे
वक़्त की रोश्नी में नहायी हुई
ज़िन्दगी पे अजब स निखार आ गया
नीम के रस में
नीम के रस में मिला जब जहर तो मीठा हो गया
झूठ उसने इस कदर बोला कि सच्चा हो गया
इतना उजला था लिबासे लफ्ज उस तकरीर का
लोग थोडी देर को समझे कि सवेरा हो गया
आ गले लग जा मुबारक हो तुझे मेरे रकीब
कल तलक जो शख्स मेर था वो तेरा हो गया
इक चेहरा, इक बगीचा, इक नजर, इक सर्द आह
उस गली से फिर हमारा पाँव फेरा हो गया…..
तेरी चाहत भी
अजीब मेरा अकेलापन है…
तेरी चाहत
भी नहीं..और
तेरी जरूरत भी है …!!!
जब सूरज भी
जब सूरज भी खो जायेगा , और चाँद कहीं सो जायेगा.
तुम भी घर देर से जाओगे , जब इश्क तुम्हे हो जायेगा..
उदास ही रहना
जिन्दगी भर , उदास ही रहना है …
__सोंचता हूँ तो मुस्कुराता हूँ ….!!!!
यादों का किस्सा
मै यादों का किस्सा खोलूँ तो,
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं.
मै गुजरे पल को सोचूँ
तो, कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं.
अब जाने कौन सी नगरी में,
आबाद हैं जाकर मुद्दत से.
मै देर रात तक जागूँ तो ,
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं.
कुछ बातें थीं फूलों जैसी,
कुछ लहजे खुशबू जैसे थे,
मै शहर-ए-चमन में टहलूँ तो,
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं.
वो पल भर की नाराजगियाँ,
और मान भी जाना पलभर में,
अब खुद से भी रूठूँ तो,
कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं……….
लफ्ज़ों में ज़िन्दगी
कितने कम लफ्ज़ों में ज़िन्दगी को बयान करूँ,
चलो तुम्हारा नाम लेकर किस्सा ये तमाम करूँ…!
क्या मासूमियत है
ना जाने क्या मासूमियत है तेरे चेहरे पर..
तेरे सामने आने से ज्यादा,
तुझे छुपके देखना अच्छा लगता है ..