यादों का तकिया

तेरी यादों का तकिया, लगाता हूँ जब भी सिरहाने,
उदासियां आ जाती है, तन्हाइयों की चद्दर उढाने..

गजब की जगह है

यह मंदिर-मस्ज़िद भी क्या गजब की जगह है दोस्तो….

जंहा गरीब बाहर और अमीर अंदर ‘भीख’ मांगता है…!!

हमसे खेलती रही

हमसे खेलती रही दुनिया ताश के पत्तों की तरह
जो जीता उसने भी फेंका और जो हारा उसने भी फेंका…..

बस एक शख्स

बस एक शख्स ऐसा हो , जो टूट कर वफ़ा करे
उठाए हाथ जब भी वो, मेरे लिए दुआ करे
अकेले बैठी मैं कहीं जो गुम ख्यालों में दिखूँ
तो आँखें मीच कर मेरी, वो पीछे से हँसा करे
मुझे बताए ग़लतियाँ, दिखाए भी वो रास्ता
वो बन के आइना, मुझे हर एक पल दिखा करे
मुझे खफा करे भी वो , मना भी ले दुलार से
जो खिलखिला के हंस पडूँ, तो एकटक तका करे.

मै खड़ा ही रहा..

मै खड़ा ही रहा.., पूछता पूछता…
उसने नज़रें झुकाई,जवाब हो गया ||
फलसफा ही पढ़ा था, सफा दर सफा,
उसने जो लिख दिया ,वो किताब हो गया ||
मैंने उम्र गुज़ारी ,उनके इंतजार में
वो मुस्कुरा जो दिए तो हिसाब हो गया ||
मै तरसता.. रहा… अपनी पहचान को ,
उसने नाम लिया , तो खिताब हो गया ||
दिल से मैंने, ये चाहा,भुलाऊँ उसे….
मेरा दिल ही.., मेरे ख़िलाफ़ हो गया ||