बाज़ार-ए-वफ़ा

नीलाम

कुछ इस कदर हुए,
बाज़ार-ए-वफ़ा में हम आज..
बोली लगाने वाले

भी वो ही थे,
जो कभी झोली फैला कर माँगा करते थे..

रहने दे आसमा

किसी शायर ने खूब कहा है,

रहने दे आसमा, ज़मीन की तलाश कर,
सब कुछ यही है, कही और न तलाश कर.

हर आरज़ू पूरी हो, तो जीने का क्या मज़ा,
जीने के लिए बस एक खूबसूरत वजह की तलाश कर,

ना तुम दूर जाना ना हम दूर जायेंगे,
अपने अपने हिस्से कि दोस्ती निभाएंगे,

बहुत अच्छा लगेगा ज़िन्दगी का ये सफ़र,
आप वहा से याद करना, हम यहाँ से मुस्कुराएंगे,

क्या भरोसा है जिंदगी का,
इंसान बुलबुला है पानी का,

जी रहे है कपडे बदल बदल कर,
एक दिन एक कपडे में ले जायेंगे कंधे बदल बदल कर…

खुद को जो

खुद को जो सूरज बताता फिर रहा था रात को
दिन में उस जुगनू का अब चेहरा धुआं होने को था