ओस की बूंदे

ओस की बूंदे है, आंख में नमी है, ना उपर आसमां है ना नीचे जमीन है ये कैसा मोड है जिन्‍दगी का जो लोग खास है उन्‍की की कमी हैं

बड़ा इतराते फिरते थे

अर्ज़ किया हैं…
बड़ा इतराते फिरते थे वह अपनें हुस्न-ए-रुखसार पर
मायूस बैठे हैं जबसे देखी हैं अपनी तस्वीर आधार कार्ड पर

खत्म हो भी

खत्म हो भी तो कैसे, ये मंजिलो की आरजू..
ये रास्ते है के रुकते नहीं, और इक हम के झुकते नही..

भाग्य के दरवाजे

भाग्य के दरवाजे पर
सर पीटने से बेहतर है,
कर्मो का तूफ़ान पैदा करे
सारे दरवाजे खुल जायेंगे.!

परिस्थितिया जब विपरीत
होती है,
तब
“प्रभाव और पैसा”
नहीं
“स्वभाव और सम्बंध” काम आते है।

रात कि तन्हाई

रात कि तन्हाई में अकेले थे हम, दर्द कि महफ़िलो में रो रहे थे हम,

आप भले ही हमारे कुछ नहीं लगते,

फिर भी आपके बिना अधूरे लग रहे हे हम.