नाम आता है..!

यह महवीयत का आलम है, किसी से भी मुखातिब हूँ..
जुबाँ पर बेतहाशा आप ही का नाम आता है..!

इश्क पे जोर नहीं

मौत की राह न देखूं कि बिन आये न रहे,
तुमको चाहूं न आओ तो बुलाये न बने।

इश्क पे जोर नहीं, है ये वो आतिश ‘गालिब’,
कि लगाये न लगे और बुझाये न बने..!

कुछ पल यूं

कुछ पल यूं ही बीत गये तसव्वुर में तेरे,

कब हसीनाएं अंकल कहने लगी पता ना चला