किसी दिन देख कर

किसी दिन देख कर मौका

मुक़द्दर मार डालेगा ,
किनारा हूँ मैं जिसका वो समंदर मार डालेगा.

इबादत में नहीं लगता है दिल ये सोच कर मेरा,
जिसे में पूजता हूँ वो

ही पत्थर मार डालेगा .

लड़ा मैं जंगे मैदां उम्र भर तलवार के दम

पर,
कहाँ मालूम था छोटा सा नश्तर मार डालेगा.

दरो दीवार पर

दिखते हैं तेरी याद के धब्बे ,
कभी तन्हाई में मुझको मेरा घर मार

डालेगा.

मुनासिब तो यही होगा न आये नींद अब वर्ना,
मेरे ख्व़ाबों के

बच्चों को ये बिस्तर मार डालेगा.

उसे इक शेर में कह दूँ मैं दिल की

बात तो लेकिन,
भरी महफिल में वो कह कर मुकर्रर मार डालेगा.

बना

ले मुझको उस दुनिया का वारिस या मेरे मौला ,
वगरना मुझको इस

दुनिया का चक्कर मार डालेगा .