कुछ तहखानों में

कुछ तहखानों में चाह कर भी अँधेरा भरा नहीं जा सकता
यकीन न आये तो चले आओ मुझमें….
मेरे शब्दों का पीछा करते हुए …..
मध्यम आंच में चाँद सुलगा रखा है|

वो तो ऐसा था

वो तो ऐसा था के एक आँसू गिरने की भी वजह पूछा करता था,
पर ना जाने क्यू अब उसे बरसात की पहचान नही होती !!!

शिद्दत ए ग़म

शिद्दत ए ग़म से शर्मिंदा नहीं वफ़ा मेरी

रिश्ते जिनसे गहरे हो,जख्म भी गहरे मिलते है |