तुम बेशक अपने ज़ुल्म की इन्तेहा कर दो
नां जाने फिर कोई हम सा बेजुबां मिले ना मिले.…”
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
तुम बेशक अपने ज़ुल्म की इन्तेहा कर दो
नां जाने फिर कोई हम सा बेजुबां मिले ना मिले.…”
सबके कर्ज़े चुका दूं मरने से पहले, ऐसी मेरी नियतं हैं,
मौंत से पहले तूं भी बता दे ज़िन्दगी, तेरी क्या किमत हैं.”.
कुछ सालों बाद ना जाने क्या होगा,
ना जाने कौन दोस्त कहाँ होगा…
फिर मिलना हुआ तो मिलेगे यादों में,
जैसे सूखे हुए गुलाब मिले किताबों में.
सुना है सब कुछ मिल जाता है खुदा कि दुआ से ,
मिलते हो अब खुद या मांग लू तुम्हें खुदा से ?
हर कोई मुझे जिंदगी जीने का तरीका बताता है।
उन्हे कैसे समझाऊ की एक ख्वाब अधुरा है मेरा…
वरना जीना तो मुझे भी आता है.
वो पूछते हैं क्या नाम है मेरा,
मैंने कहा बस अपना कहकर पुकार लो.
Zindagi Tasveer bhi hai
Aur Taqdeer bhi…
Farq to Rango ka hai…
Manchahe Rango se bane
to Tasvir,
Aur Anjaane Rango se bane
to Taqdir…
जुबाँ न भी बोले तो,
मुश्किल नहीं…
फिक्र तब होती है जब…
खामोशी भी बोलना छोड़ दें…।।
जख्म छुपाना भी एक हुनर है,
वरना, यहाँ हर मुठ्ठी में नमक है
ज़हर का सवाल नहीं था
वो तो में पी गया
तकलीफ़ लोगों को ये थी
की में जी गया ।