जिंदगी उलझी पड़ी है

मैं भूला नहीं हूँ किसी को…
मेरे बहुत अच्छे दोस्त है ज़माने में ………
बस थोड़ी जिंदगी उलझी पड़ी है …..
2 वक़्त की रोटी ढूंढने में। ….

समझ रहा हुँ

खामोश रहता हुँ
क्योकि अभी दुनिया को समझ रहा हुँ!
समय जरूर लुगाँ पर जिस दिन दाव
खेलुँगा उस दिन
खिलाङी भी मेरे होगे और खेल
भी मेरा !!!

लकीर नहीं हूँ मैं

इंसान हूँ, तहरीर नहीं हूँ मैं ।
पत्थर पे लिखी लकीर नहीं हूँ मैं ।।
मेरे भीतर इक रूह भी बसती है लोगों
सिर्फ़ एक अदद शरीर नहीं हूँ मैं ।।