आईना देख के

आईना देख के तसल्ली

हुई
कोई तो है इस घर मे
जो जानता है हमे

किसी को न पाने से ज़िंदगी

खत्म नहीं हो जाती,
पर किसी को पा के खो देने के बाद कुछ बाकी

नहीं बचता

अमीर होती है

बहुत अमीर होती है ये शराब
की बोतलें…

पैसा चाहे जो भी लग जाए पर सारे ग़म ख़रीद
लेतीं है…

जीने की आदत

इतनी दूरियां ना बढ़ाओ थोड़ा सा याद ही कर लिया करो, कहीं ऐसा ना हो कि तुम-बिन जीने की आदत सी हो जाए…

मैं अकेला हूं

कहने को ही मैं अकेला हूं.. पर हम चार
है.. एक मैं.. मेरी परछाई..
मेरी तन्हाई.. और तेरा एहसास..”

तैरना तो आता था

तैरना तो आता था हमे मोहब्बत के समंदर मे लेकिन…
जब उसने हाथ ही नही पकड़ा तो डूब जाना अच्छा लगा…

फिर से सूरज

फिर से सूरज लहूलुहान समंदर में गिर पड़ा,
दिन का गुरूर टूट गया और फिर से शाम हो गई .