मंज़ूर नहीं किसी को ख़ाक में मिलना,
आंसू भी लरज़ता हुआ आँख से गिरता है…..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मंज़ूर नहीं किसी को ख़ाक में मिलना,
आंसू भी लरज़ता हुआ आँख से गिरता है…..
ये चांद की आवारगी भी यूंही नहीं है,
कोई है जो इसे दिनभर जला कर गया है..
चिँगारियोँ को हवा दे कर हम दामन नहीँ जलाते,
बुलंद इरादे हमारे पूरे शहर मेँ आग लगाते हैँ..
सूरज रोज़ अब भी बेफ़िज़ूल ही निकलता है ….
तुम गए हो जब से , उजाला नहीं हुआ …
तलब नहीं कोई हमारे लिए तड़पे ,
नफरत भी हो तो कहे आगे बढ़के.!!
जिसे शिद्दत से चाहो वो मुद्दत से मिलता है,
बस मुद्दतों से ही नहीं मिला कोई शिद्दत से चाहने वाला!
लिखा जो ख़त हमने वफ़ा के पत्ते पर,
डाकिया भी मर गया शहर ढूंढते ढूंढते..
उस तीर से क्या शिकवा, जो सीने में चुभ गया,
लोग इधर हंसते हंसते, नज़रों से वार करते हैं।
बताओ तो कैसे निकलता है जनाज़ा उनका,
वो लोग जो अन्दर से मर जाते है…
दो लब्ज़ क्या लिखे तेरी याद मे..
लोग कहने लगे तु आशिक बहुत पुराना है|