कुछ इस तरह से नाराज़ है वो हमसे,
जैसे उन्हे किसी और ने मना लिया हो|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कुछ इस तरह से नाराज़ है वो हमसे,
जैसे उन्हे किसी और ने मना लिया हो|
कौन कहता है के मुसाफिर ज़ख़्मी नहीं होते,
रास्ते गवाह है,
बस कमबख्त गवाही नहीं देते ।।
गिनती तो ठीक से सीखी नही,
मगर…
इतना मालूम है,
खुसिया बाटने से बढ़ती है..!!
कभी तो हिसाब करो हमारा भी,
इतनी मोहब्बत भला देता कौन है… उधार में..!!
सिर्फ़ लहरा के रह गया आँचल
रंग बन कर बिखर गया कोई………
दुश्मनी से मिलेगा क्या तुम को
दोस्त बन कर मिला करो हमसे
मिला जब भी समुन्दर सा मिला
तू मेरी प्यास के क़ाबिल कहाँ था
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक
गुनगुनाता जा रहा था इक फ़क़ीर
धूप रहती है ना साया देर तक
“माँ” एक ऐसी ‘बैंक’ है जहाँ आप हर भावना और दुख जमा कर सकते है।
और
“पापा” एक ऐसा ‘क्रेडिट कार्ड’ है जिनके पास बैलेंस न होते हुए भी हमारे सपने पूरे करने की कोशिश करते है॥
हमारा अंदाज कुछ ऐसा है कि…
जब हम बोलते हैँ तो बरस जाते हैँ..
और
जब हम चुप रहते हैँ
तो लोग तरस जाते हैँ..!!