कुछ इस तरह

कुछ इस तरह से हमने पूरी क़िताब पढ़ ली….
ख़ामोश बैठी रही ज़िंदगी…चाहतों ने पन्ने पलट दिए….

बातों को स्वीकार

हे भगवान,

मुझे उन बातों को स्वीकार करने का धैर्य प्रदान करो जिन्हें मैं बदल नहीं सकता हूं;
जिन चीजों को मैं बदल सकता हूं उनको बदलने का साहस दो
तथा इन दोनों में अंतर करने के लिए बुद्धि प्रदान करो।

यू गलत भी

यू गलत भी नहीं होती ,चेहरे की तासीर साहिब

लोग बैसे भी नहीं होते,जैसे नजर आते है