यही हुनर है उस स्याही का
जो हर किसी की कलम में होती नहीं..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
यही हुनर है उस स्याही का
जो हर किसी की कलम में होती नहीं..
एक ही समानता है पतंग औऱ जिंदगी में..
ऊँचाई में हो तब तक ही वाह-वाह होती है.
सोचा था घर बनाकर बेठुंगा सुकून से,
पर घर की जरूरतों ने मुसाफिर बना डाला..!!
तसव्वुर ख्वाब दरवाज़े..दरीचे कितने रास्ते हे तुम आओ तो सही
कौन कहता है तुझे मैंने भुला रक्खा है
तेरी यादों को कलेजे से लगा रक्खा है
लब पे आहें भी नहीं आँख में आँसू भी नहीं
दिल ने हर राज़ मुहब्बत का छुपा रक्खा है
तूने जो दिल के अंधेरे में जलाया था कभी
वो दिया आज भी सीने में जला रक्खा है
देख जा आ के महकते हुये ज़ख़्मों की बहार
मैंने अब तक तेरे गुलशन को सजा रक्खा है |
सुना है इस खेल में सबके सर जाते हैं,
इश्क में इतना ख़तरा है तो हम घर जाते हैं…
आखों की ख्वाहिशों को हर वक़्त दरकिनार किया,
ये सोचकर कि खुदा देखा नहीं पूजा जाता है।
मेरी ज़िन्दगी में तेरी याद भी उसी तरह है,
जैसे सर्दी की चाय में अदरक का स्वाद|
एक नींद है जो लोगों को रात भर नहीं आती,
और एक जमीर है जो हर वक़्त सोया रहता है।
इस खामख्याली में, मगरूर वो रहते हैं…
सब हुनर उन्हीं के हैं, हर ऐब हमारा है….