: तू कितनी रंगीन क्युं न हो ए जिन्दगी…
काले पीले दोस्तों के बगैर अच्छी नहीं लगती ….
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
: तू कितनी रंगीन क्युं न हो ए जिन्दगी…
काले पीले दोस्तों के बगैर अच्छी नहीं लगती ….
तुझसे अच्छे तो जख्म हैं मेरे
उतनी ही तकलीफ देते हैं जितनी बर्दास्त कर सकूँ
कभी तो मेरी ख़ामोशी का मतलब खुद समझ लो….!
कब तक वजह पूछोगे अंजानो की
मेरे वजूद को दामन से झाड़ने वाले नासमझ,
जो तेरी आखिरी मंजिल है वो ही मिट्टी हूँ मैं…
जिंदगी अब नहीं संवरेगी शायद..तजुर्बेकार था.. उजाड़ने वाला…
अब मज़ा आने लगा है तीरों को देखकर ।
दुआ है तेरे तरकश में तीर कभी कम न हों ।
मैं दाने डालता हूँ ख्यालों के……
लफ्ज़ कबूतर से चले आते हैं….
पेड़ भूडा ही सही घर मे लगा रहने दो, फल ना सही छाँव तो देगा
मैं एक ताज़ा कहानी लिख रहा हूँ,मगर यादें पुरानी लिख रहा हूँ …
एक पहचानें कदमों की आहट फिर से लौट रही है,
उलझन में हूँ जिंदगी मुस्कराती हुई क्यूँ रूबरू हो रही है…