ना नूर थे

ना नूर थे ना रंग फिर भी दिल ये कायल,इस मोहब्त का क्या पता क्या सोचकर हो जाये…….

वो खत जिन्हें

वो खत जिन्हें तुमको भेजने की हिम्मत ना हुई।
हम हर रोज उन्हें पढ़कर सोचते है कि ‘तुम पढ़ती तो क्या सोचती’???

कहते है के

कहते है के पैसा बोलता है
हमने पैसे को बोलते तो नहीं देखा
पर कई यो को चुप करवाते जरूर देखा है|कहते है के पैसा बोलता है
हमने पैसे को बोलते तो नहीं देखा
पर कई यो को चुप करवाते जरूर देखा है|

मैं लिखता हुं

मैं लिखता हुं सिर्फ दिल बहलाने के लिए….
वर्ना
जिसपर प्यार का असर नही हुआ
उस पर अल्फाजो का क्या असर होगा..

न जाने क्या

न जाने क्या मासूमियत है तेरे चेहरे पर, तेरे सामने आने से ज़्यादा तुझे छुपकर देखना अच्छा लगता है …!!!..