पता है तुम्हारी

पता है तुम्हारी और मेरी,
मुस्कान मे क्या फर्क है ,
तुम खुस होकर मुस्कुराते हो,
हम तुम्हे खुस देखकर मुस्कुराते है..

मरीज़-ए-इश्क़

मरीज़-ए-इश्क़ हूँ तेरा, तेरा दीदार काफी है….
हर एक नुस्खे से बेहतर, निगाह-ए-यार काफी है !

लगता है कि

लगता है कि इन में कोई नाज़ुक सा है रिश्ता….

जब चोट लगे दिल पे तो भर आती हैं आँखें….