शिकवा तकदीर का, ना शिकायत अच्छी,
वो जिस हाल में रखे, वही ज़िंदगी अच्छी
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
शिकवा तकदीर का, ना शिकायत अच्छी,
वो जिस हाल में रखे, वही ज़िंदगी अच्छी
सभी के अपने मसाइल सभी की अपनी अना,
पुकारूँ किस को जो दे साथ उम्र भर मेरा…
मैं तेरी कोई नहीं मगर इतना तो बता ,
ज़िक्र से मेरे, तेरे दिल में आता क्या है ..!!
जरा अपना ध्यान रखना दोस्तो….,
सुना है इश़्क इसी मौसम में शिकार करता है|
जो दिल की गिरफ्त में हो जाता है,
मासूक के रहमों-करम पर हो जाता है,
किसी और की बात रास नहीं आती,
दिल कुछ ऐसा कम्बख्त हो जाता है,
मानता है बस दलीले उनकी,
ये कुछ यूँ बद हवास हो जाता है,
यार के दीदार में ऐसा मशगूल रहता है,
कि अपनी खैरियत भूल कर भी सो जाता है,
खुदा की नमाज भी भूल कर बैठा है,
कुछ इस कदर बद्सलूक हो जाता है,
जब दिल की गिरफ्त मे हो कोई,
जाने क्या से क्या हो जाता है…
अनदेखे धागों में, यूं बाँध गया कोई
की वो साथ भी नहीं, और हम आज़ाद भी नहीं.
हजारों महफिलें है और लाखों मेले हैं,
पर जहां तुम नहीं वहाँ हम अकेले हैं|
कुछ तुम कोरे कोरे से,कुछ हम सादे सादे से, एक आसमां पर जैसे,
दो चाँद आधे आधे से.
पुरानी होकर भी खाश होती जा रही है,
मोहब्बत बेशरम है, बेहिसाब होती जा रही है..
कुछ इस क़दर दिलशिकन थे मुहब्बत के हादसे।
हम ज़िन्दगी से फिर कोई शिकवा न कर सके।।