ज़र ही हादसे का अजीबो गरीब था,
वो आग से जल गया जो नदी के करीब था..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
ज़र ही हादसे का अजीबो गरीब था,
वो आग से जल गया जो नदी के करीब था..
इक लफ्ज़ थी मैं आधा अधूरा सा…
तुझ से जुडा और कहानी बन गई…
ना जाने कितनी ही अनकही बातें साथ ले जाऊंगा,
लोग झूठ कहते रहेंगे कि खाली हाथ गया है !!
तेरी यादों का सिलसिला भी अनोखा है…..
कभी एक पल…. कभी पल पल …..कभी हर पल …..
तेरा हिज्र (जुदाई ) मेरा नसीब है,
तेरा गम ही मेरी हयात (किस्मत) है,
मुझे तेरी दूरी का गम हो क्यों,
तू कही भी हो मेरे साथ है…
अंगूठी तो मुझे लौटा रही हो पर ऊंगली के निशान का क्या करोगी….
खामोश हूँ सिर्फ़ तुम्हारी खुशी के लिये ये न सोंचना कि मेरा दिल दुखता नहीं…
उसने मेरे ज़ख्मो का यूँ किया इलाज,
मरहम भी लगाया तो काँटों की नोक से….
दोस्तों आज तो खुद ही रोया और रो के चुप भी हो गया,
सोचा अगर वो अपना मानती तो यू रोने न देती…
जाने क्यों अधूरी सी रह गई है जिंदगी लगता है
जैसे खुद को किसी के पास भूल आए..