पथ के पहचाने छूट गए

पथ के पहचाने छूट गए,
पर साथ साथ चल रही याद।
जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला,
उस उस राही को धन्यवाद।।

आभारी हूँ मैं उन सबका,
दे गए व्यथा का जो प्रसाद।
जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला,
उस उस राही को धन्यवाद।।

जब कभी भी

जब कभी भी ख़वाब में सहरा नज़र आया मुझे।

तिश्नगी का इक नया चेहरा नज़र आया मुझे।।

परिंदों को तो

परिंदों को तो खैर रोज कहीं से, गिरे हुए दाने जुटाने हैं
पर वो क्यों परेशान हैं, जिनके भरे हुए तहखाने हैं|