दुआ कोन सी

दुआ कोन सी थी हमें याद नहीं,
बस इतना याद है दो हथेलियाँ जुड़ी थी एक तेरी थी एक मेरी थी..

महफ़िल में हँसना

महफ़िल में हँसना हमारा मिजाज बन गया,
तन्हाई में रोना एक राज बन गया,
दिल के दर्द को चेहरे से जाहिर न होने दिया,
बस यही जिंदगी जीने का अंदाज बन गया।

कभी सोचता हूँ

कभी सोचता हूँ की सारे हिसाब चुकता कर आउ,
लेकिन फिर ख्याल आता है कि आसुओ की कीमत लाख गुना अधिक होती है..

हम तुझ से

हम तुझ से किस हवस की फ़लक जुस्तुजू करें;

दिल ही नहीं रहा है कि कुछ आरज़ू करें|

फिर उसी की तमन्ना

फिर उसी की तमन्ना,
ऐ दिल,तुझे इज़्ज़त रास नहीं…??
मुझ से हर बार नज़रें चुरा लेती है वो,
मैंने कागज़ पर भी बना के देखी है आँखे उसकी !!