भीड़ इतनी भी न थी..

ढूंढ तो लेते अपने प्यार को हम,
शहर में भीड़ इतनी भी न थी..
पर रोक दी तलाश हमने,
क्योंकि वो खोये नहीं थे,
बदल गये थे…..

जरा तमीज़ से

जरा तमीज़ से बटोरना, बुझे दियों को दोस्तों,

इन्होंने अमावस की अन्धेरी रात में हमें रौशनी दी थी…

किसी और को जलाकर खुश होना अलग बात है,

इन्होंने तो खुद को जलाकर हमें खुशी दी थी…