वो दर्द ही क्या

वो दर्द ही क्या जो आँखों से बह जाए!
वो खुशी ही क्या जो होठों पर रह जाए!
कभी तो समझो मेरी खामोशी को!
वो बात ही क्या जो लफ्ज़ आसानी से कह जायें!

अँधेरे ही थे

अँधेरे ही थे मेरे अपने भी अब रौशनी पाने को जी चाहता है
रहो में भटक रहा था में अब तक अब अपनी मंजिल पाने को जी चाहता है।

ये हर सुबह

ये हर सुबह इश्क के जलसे
ये हर रात जुदाई के जुलुस …
ये बेरोजगार शायर बनना
तुम्हारे नौकरी जितना आसान थोड़े है ।