वो दर्द ही क्या

वो दर्द ही क्या जो आँखों से बह जाए! वो खुशी ही क्या जो होठों पर रह जाए! कभी तो समझो मेरी खामोशी को! वो बात ही क्या जो लफ्ज़ आसानी से कह जायें!

अँधेरे ही थे

अँधेरे ही थे मेरे अपने भी अब रौशनी पाने को जी चाहता है रहो में भटक रहा था में अब तक अब अपनी मंजिल पाने को जी चाहता है।

तुम्हें ख़बर नहीं है

तुम्हें ख़बर नहीं है तुम्हें सोचने की ख़ातिर बहुत से काम हम कल पर छोड़ देते है|

परेशान तो हम भी

परेशान तो हम भी बहुत हैं लेकिन मुस्कुरा के जीने में क्या जाता है!

कितना लुफ्त ले रहे है

कितना लुफ्त ले रहे है लोग मेरे इश्क का, बेवफा देख तूने तो मेरा तमाशा बना दिया|

अपने किरदार को

अपने किरदार को मौसम से बचाकर रखना लौट के फुलो में वापिस नही आती खुशबू|

खत्म कर दी थी

खत्म कर दी थी जिन्दगी की सब खुशियाँ तुम पर कभी फुर्सत मिले तो सोचना मुहब्बत किसने की थी…..

ये हर सुबह

ये हर सुबह इश्क के जलसे ये हर रात जुदाई के जुलुस … ये बेरोजगार शायर बनना तुम्हारे नौकरी जितना आसान थोड़े है ।

नींद तो आने को थी

नींद तो आने को थी पर दिल पुराने किस्से ले बैठा अब खुद को बे-वक़्त सुलाने में कुछ वक़्त लगेगा|

आओ एक बार

आओ एक बार साथ मुस्कुरा लें…. फिर ना जाने ज़िन्दगी कहाँ ले जाये …!!!

Exit mobile version