रोज़ रोज़ रात को लिखूं ये मुमकिन नहीं….
कहकर… मेरी कलम सो गयी है रज़ाई में।
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
रोज़ रोज़ रात को लिखूं ये मुमकिन नहीं….
कहकर… मेरी कलम सो गयी है रज़ाई में।
सभी का खून है शामिल यहा की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोडी है
Zindgi Gujar Jaye
Par….
Dosti Kam Na Ho,
Yaad Hame Rakhana,
Chahe Paas Ham Na
Ho,
Qayamat Tak Chalta
Rahe
Dosti Ka ye Safar,
Dua Karo Kabi
ye ……
RISHTA Khatam Na
ho…
हमी से सीखी है
वफ़ा-ऐ-मोहब्बत उसने,
जिससे भी करेगा… कमाल करेगा ।
सोचते हे सीख ले हम भी
बेरुखी करना,
प्यार निभाते-२ अपनी ही कदर खो दी हमने।
झूठ बोलते है वो लोग जो
कहते हैं, हम सब मिटटी से
बने हैं…!!
मैं एक शख्स से वाकिफ हूँ, जो पत्थर का बना हैं….!!
कोई ज़हर कहता है कोई
शहद कहता है….
दोस्त,
कोई समझ नही पाया ज़ायका मोहब्बत का ।
गुज़र जायेगी ये ज़िन्दगी उसके
बगैर भी..
…
वो हसरत-ऐ-ज़िन्दगी है, शर्त-ऐ-ज़िन्दगी तो नहीं ।
तू याद रख या ना रख,
तू
ही याद हे, ये याद रख….
झूठी शान के परिंदे ही ज्यादा फड़फडडाते हैं,
बाज की उड़ान में कभी आवाज नहीं होती है !!