क्यूँ न
कुछ इस तरह ये ज़िंदगी हो जाए
मैं हर्फ़ हो जाऊँ
और तू लफ्ज़ बनकर मुझमें उतर जाए !
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
क्यूँ न
कुछ इस तरह ये ज़िंदगी हो जाए
मैं हर्फ़ हो जाऊँ
और तू लफ्ज़ बनकर मुझमें उतर जाए !
बोले गए शब्द ही एसी चीज है जिसकी वजह से इंसान,
या तो दिल में उतर जाता है या दिल से उतर जाता है !!
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो
चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे|
रात भर भटका है मन मोहब्बत के पुराने पते पे ।
चाँद कब सूरज में बदल गया पता नहीं चला ।।
मरने अगर न पाई तो ज़िन्दा भी कब रही ..
तन्हा कटी वो उम्र जो थी तेरे साथ की …
हर रात कुछ खवाब अधूरे रह जाते हैं…
किसी तकिये के नीचे दबकर अगली रात के लिये….
सिर्फ महसूस किये जाते हैं;
कुछ एहसास कभी लिखे नहीं जाते..।।
तुम तो डर गए एक ही कसम से..!
हमें तो तुम्हारी कसम देकर हजारो ने लूटा है..!
यूँ ना हर बात पर जान हाजिर कीजिये,
लोग मतलबी हैं कहीं मांग ना बैठे…!!!
वो बुलंदियाँ भी किस काम की जनाब,
जहाँ इंसान चढ़े और इंसानियत उतर जाये ।