क्यूँ न
कुछ इस तरह ये ज़िंदगी हो जाए
मैं हर्फ़ हो जाऊँ
और तू लफ्ज़ बनकर मुझमें उतर जाए !
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
क्यूँ न
कुछ इस तरह ये ज़िंदगी हो जाए
मैं हर्फ़ हो जाऊँ
और तू लफ्ज़ बनकर मुझमें उतर जाए !
बोले गए शब्द ही एसी चीज है जिसकी वजह से इंसान,
या तो दिल में उतर जाता है या दिल से उतर जाता है !!
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो
चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे|
एक अरसे से मुयासिर ही नहीं है वो लफ्ज़ ,
जिसे लोग करार कहते हैं …!!
सहम उठते हैं कच्चे मकान पानी के खौफ़ से,
महलों की आरज़ू ये है कि बरसात तेज हो
तुम तो डर गए एक ही कसम से..!
हमें तो तुम्हारी कसम देकर हजारो ने लूटा है..!
सवाल ज़हर का नहीं था
वो तो हम पी गए
तकलीफ लोगो को बहुत हुई
की फिर भी हम कैसे जी गए
बदलवा दे मेरे भी नोट ए ग़ालिब,
या वो जगह बता दे, जहां कतार न हो..
वो बुलंदियाँ भी किस काम की जनाब,
जहाँ इंसान चढ़े और इंसानियत उतर जाये ।
भीड़ हमेशा उस रास्ते पर चलती है जो रास्ता आसान होता है लेकिन
.यह जरुरी नहीं कि भीड़ हमेशा सही रास्ते पर चले
इसलिए आप अपने रास्ते खुद चुनिए”
“क्योंकि आपको आपसे बेहतर और कोई नहीं जानता…