हज़ार दुख मुझे देना, मगर ख़्याल रहे
मेरे ख़ुदा ! मेरा हौंसला बहाल रहे ..।
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जिस दम तेरे
जिस दम तेरे कूचे से हम आन निकलते हैं,
हर गाम पे दहशत से बे-जान निकलते हैं…
एक मुनासिब सा
एक मुनासिब सा नाम रख दो तुम मेरा
रोज जिदंगी पूछती हैं रिश्ता तेरा मेरा…
अपनी तन्हाईयों को
अपनी तन्हाईयों को मैं यूँ दूर कर लेता हूँ,
अपनी परछाइयों से ही गुफ्तगू कर लेता हूँ।
इस भीड़ में किससे करूँ मैं दिल की बात
अपने मन के अंदर ही कस्तूरी ढूँढ लेता हूँ।
तेरी तकदीर से क्योंकर भला मैं रशक करूँ
अपने हाथों में भी कुछ लकीरें उकेर लेता हूँ।
हाथ आ जाती है मेरे सारे जहाँ की खुशियाँ
जो उसके होठों पे मैं मुस्कुराहट पा लेता हूँ ।
तोहमतें किसी पर क्योंकर हो रस्ता बदलने का
अक्सर सफर में मैं भी तो कारवाँ बदल लेता हूँ।
ख्वाहिश अगर थी मंजिल तक साथ निभाने की
फिर क्यूँ जिन्दगी की मजबूरियाँ ढूँढ लेता हूँ।
कभी रौनक-ए-बज्म में शुमार थी मेरी भी गज़ल
अब दरख्तों से रूबरू हो मैं गीत गुनगुना लेता हूँ।
बड़ी आरजू थी तेरी महफिल में फरियाद करूँ
मिलते ही उनसे ‘आहट’ अल्फाज़ बदल लेता हूँ।
खामोशियाँ उदासियों से
खामोशियाँ उदासियों से नहीं,
बल्कि यादों की वजह से हुआ करती है …
वक्त सिखा देता है
वक्त सिखा देता है
इंसान को फलसफा जिंदगी का
फिर तो नसीब क्या
लकीर क्या और तकदीर क्या ….
बहुत अजीब है
बहुत अजीब है तेरे बाद की ये बरसातें भी….
मैं अक्सर बंद कमरे में भी भीग जाता हूँ….!!
तीर की तरह
तीर की तरह नुकीली हो गई है,
ज़िन्दगी माचिस की तिली हो गई है.!!
ख़ामोशी छुपाती है
ख़ामोशी छुपाती है ऐब और हुनर दोनों ,
शख्सियत का अंदाज़ा गुफ्तगू से
होता है ..!!
मैंने उन तमाम परिदों के
मैंने उन तमाम परिदों के पर काट दिए…
जिन को अपने अंदर उड़ते देखा था कभी|