तेज़ रफ़्तार हुआ है, ज़माना इतना के..
लोग मर जाते है, जीने का हुनर आने तक|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
तेज़ रफ़्तार हुआ है, ज़माना इतना के..
लोग मर जाते है, जीने का हुनर आने तक|
अपने ही तोड देते हैं यहां वरना गैरौ को क्या पता कि
दिल की दीवार कहा से कमजोर है…
थोडी ही सही
पर बातो की तेरी जो धूप ना पडे मुझ पर
तो धुन्धदला-सा जाता हू मैं….
दिल गवारा नहीं करता है शिकस्त-ए-उम्मीद
हर तग़ाफ़ुल पे नवाज़िश का गुमाँ होता है |
तेरे शहर में आने को हर कोई तरसता है
लेकिन वो क्या जाने
वहां कोई नही पहुँचता है
जो पहुँचता है
वो तुझसा ही होकर
कोई खुद सा वहां कब पहुँचता है
ये तो कुछ शब्दों का भ्रम जाल है इन मंदिर में रखी किताबो का
जो हर कोई तुझसे मिलने को तरसता है
खुल जाए अगर भ्रम काबा-ए-काशी
तो कौन फिर जान कर सूली पे चढ़ता है
वो जो शराब है तेरी
जिसे कहते मोहब्बत
पीने के बाद ही पतंगा
शमा पे मरता है
यूँ ही कोई क़ैस कहा लैला पे मरता है
जान कर
कोई कहाँ
सूली पे चढ़ता है ….
ये दुनिया अक्सर सस्ते में उन्हें लूट लेती है;
खुद की क़ीमत का जिन्हें अन्दाज़ा नहीं होता!
हज़ार बार माँगा करो तो क्या हांसिल ,
दुआ वहीं है जो दिल से कभी निकलती हैं |
सुनो जरा फिर से याद आ जाओ ना ..!
कुछ आँसुओ ने अर्ज़ी दी है रिहाई की ..
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें |
भटकता फिर रहा है दिल किनारों की तमन्ना में
तुम्हारे इश्क़ में डूबे तो बेड़ा पार हो जाये |