कांच के कपड़े पहनकर हंस रही हैं बिजलियां
उनको क्या मालूम मिट्टी का दीया बीमार है…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कांच के कपड़े पहनकर हंस रही हैं बिजलियां
उनको क्या मालूम मिट्टी का दीया बीमार है…
कोई ठुकरा दे तो हँसकर जी लेना..
दोस्तों
क्यूँकि मोहब्बत की दुनिया में ज़बरदस्ती नहीं होती..
अच्छा हुआ के वक़्त पर ठोकर लगी मुझे
छूने चला था चाँद को दरिया में देखकर
मंद मंद मुस्कान नूरानी चहरे पर, गालो पे जुल्फे बैठी है पहरे पर,
आंखो मे तीरी महताब सी रौशनी,
काजल बन जाये तलवार तेरे चहरे पर…
हजारो जबावों से अच्छी है मेरी खामोशी
ना जाने कितने सवालों की आबरू रखी ।
ग़लत-फ़हमियों में जवानी गुज़ारी
कभी वो न समझे कभी हम न समझे…
झील की चादर पे फैली मौत सी ख़ामोश उदासी देखता हूँ…
पानी के इतने पास हूँ पर बिन तेरे ज़िंदगी प्यासी देखता हूँ?
आया था किस काम से,
तू सोया चादर तान।
सूरत संभाल ए गाफिल,
अपना आप पहचान।।
इश्क का धंदा ही बंद कर दिया साहीब
मुनाफे में जेब जले और घाटे में दिल |
गम ऐ बेगुनाही के मारे है,, हमे ना छेडो..
ज़बान खुलेगी तो,,
लफ़्ज़ों से लहू टपकेगा.