जो कहते थे

जो कहते थे मुझे डर है, कहीं मैं खो न दूँ तुम्हे,

सामना होने पर मैंने उन्हें चुपचाप गुजरते देखा है।

टूटकर शाख से

टूटकर शाख से मिट्टी में कहीं बिखर जाता है,
रो तो लेता हूं मगर दर्द और भी बढ जाता है|